जुस्तजू भाग --- 19
" न हम बेवफा थे, न तुम बेवफा थे।
बस दोनों के रास्ते जुदा थे।।" (फिल्मी गीत के बोल)
"धांय...."
एक और गोली की आवाज गूंजी। सब स्तब्ध खड़े थे !! उन्होंने शिवेंद्र को भी गिरते देखा। तुरंत वह जगह खून से भरने लगी।
तभी शिवेंद्र की आवाज़ गूंजी, "जीजो सा !!"
अब सभी का ध्यान अनुपम की ओर गया। गोली उसके हेलमेट को छेदकर सर में घुस गई थी। तुरंत शान्ति समिति के एक सदस्य, जो कि डॉक्टर भी थे, उन्होंने अनुपम को संभाला। अन्य अधिकारी भी सक्रिय हो उठे। फोन बजने लगे। अकबरपुर जिला अस्पताल, लखनऊ और दिल्ली तक खबर की जा चुकी थी।
प्रशासनिक, पुलिस, चिकित्सा, और राजनीतिक सक्रियता अपने चरम पर थी। सीएम साहब ने तुरंत राजकीय हेलीकॉप्टर भेजने का निर्णय लिया वहीं केंद्र सरकार ने दिल्ली के सबसे बड़े हॉस्पिटल में व्यवस्था करवाने के निर्देश जारी कर दिए।
"सर की हालत बेहद गंभीर है। ज्यादा से ज्यादा 1 घंटा ही बचा सकते हैं। तुरंत ऑपरेशन करवाना पड़ेगा सर। सीएमएचओ ने लखनऊ सीएमओ को सूचित किया। चिकित्सा मंत्री हाई अलर्ट के कारण वहीं थे।
"लखनऊ पीजीआई में डॉक्टर आरूषि मौजूद हैं सर !! उन्होंने ऐसा ऑपरेशन पहले भी किया है और उनकी सक्सेज रेट हंड्रेड परसेंट है।"उन्होंने सीएम साहब को कहा।
"तुरंत पीजीआई में सारी व्यवस्था कीजिए। हेलीकॉप्टर लखनऊ लाने को कहिए।" उन्होंने निर्देश दिए। आखिर अनुपम जिस सफलता से हर काम को संपन्न कर देता था तो सीएम साहब का बेहद प्रिय अधिकारी हो गया था।
पीजीआई में भाग दौड़ मच गई थी। इमरजेंसी लग गई थी वहां। चारों तरफ घेराबंदी हो गई।
"डॉक्टर आरूषि, आपकों तुरंत ऑपरेशन करना होगा। एक उच्चाधिकारी को गोली लगी है और वे बेहद गंभीर हैं बचने के चांसेज लगातार कम हो रहे हैं। उन्हे अकबरपुर से लाया जा रहा है। सीएम साहब के निर्देश हैं कि यह ऑपरेशन आप ही करेंगी।" ख़ुद प्रिंसिपल मम्मीजी जहां एडमिट थी वहां आरूषि से मिलने चले आए थे। आरूषि बाहर चल रहीं अफरा तफरी से अनभिज्ञ अपनी मां की सेवा में लगी थी।
"सर, प्लीज किसी और को यह करने को कहें। मेरी सास को मेरी जरूरत है यहां।"
"डॉक्टर मैं पर्सनली इनका ध्यान रखूंगा। आप कृपया ऑपरेशन करें। बाकी बातें हम बाद में करेगें।"
आरूषि तैयार होने चली गई। अपने भाग्य से बिल्कुल अंजान !! उसे तो पता भी न था कि भाग्य आज उसकी सबसे बड़ी परीक्षा ले रहा है।
आधे घंटे में चॉपर हेलीपैड पर लैंड हो गया था। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर अनुपम को वहां ले आया गया और सीटी स्कैन, एमआरआई, एनेस्थीसिया, ब्लड आदि सभी कार्य बिजली की गति से चल रहे थे। आरूषि ऑपरेशन थियेटर में चली आई। उधर सौम्या को भी खबर लग गई। वह पीजीआई में ही थी तब। उसे आशंका हुई कि शिवेंद्र को लाया गया होगा।
"वो भी थे वहां और दी ने पहले ऑपरेशन भी किया था उनका !! हे भगवान !!! प्लीज, प्लीज अबकी बार नहीं !! मैं सहन नहीं कर पाऊंगी !!" सौम्या मन ही मन बार बार भगवान से प्रार्थना कर रही थी। भगवान ने उसकी सुनी तो, पर वह भी अनजान थी कि उसकी सुनी थी पर उसकी दी की नहीं।
"आरूषि ऑपरेशन थियेटर में पहुंची। अपने अपने विभाग के सबसे वरिष्ठ डॉक्टर्स और सर्जन्स मौजूद थे आरूषि की मदद करने को। उसे ब्रीफ किया गया। सर्जरी की गाइड लाइन्स तय हुई। आरूषि को प्रिंसिपल ने अनुपम के बारे में नहीं बताने की ताकीद की थी सबको। अनुपम को ऑपरेशन थियेटर में ले आया गया।
जैसे ही आरूषि की नज़र पड़ी, वह सुन्न हो गई !!! उसके दिल दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था !!
पर हाथों ने मशीनी अंदाज़ में बिजली की गति से काम करना शुरू कर दिया। वह बिल्कुल खाली थी। जो भी वह कर रही थी उसके अनुभव और ज्ञान का कारनामा था।
उधर शिवेंद्र भी लखनऊ पीजीआई पहुंच गया था। सौम्या की धड़कने उसे देखकर लौट आई थी। पर झटका लगना बाकी था !! जैसे ही अनुपम के बारे में उसे पता लगा उसके हाथ फिर प्रार्थना में जुड़ गए।
शिवेंद्र रोए जा रहा था। केवल कुछ दिन पहले ही उसने अपनी बहन को पाया था और उसे दुल्हन बनाकर विदा किया था। आज उसी बहन का सुहाग उसकी जान बचाते हुए खतरे में था और उसकी बहिन !! उसके हाथों में ही उसके सुहाग की जान थी। वह भी सुन्न सा हो गया था। सौम्या भी कुछ देर तक वैसी ही रही फिर उसकी चेतना जागी।
"दी की सास और जीजाजी की मां को भी खतरा है। हमें उन्हें भी संभालना होगा।"उसने शिवेंद्र में नई चेतना जगाई "जल्दी से आंसू पौंछिये। तुरंत जाना होगा।"
सौम्या ने अपने माता पिता और शिवेंद्र ने उदयपुर ख़बर कर दी। मुंबई जान बूझकर ख़बर नहीं की गई। वहां संभालने का निर्णय शेष परिवार पर छोड़ दिया गया।
उदयपुर से शिवेंद्र, अनुपम के ननिहाल और बड़ी दादी के परिवार लखनऊ के लिए रवाना हो गए। वहीं दोनो भाइयों में से एक भाई अपनी पत्नी के साथ मुंबई रवाना हो गया आरव को संरक्षण देना भी जरूरी था आखिर !! वहां केवल एक वृद्ध महिला और नौकर ही थे।
ऑपरेशन देर रात तक चलता रहा। सीएम साहब ने गृह और चिकित्सा मंत्री को वहां भेज दिया था। वहीं उत्तर प्रदेश के प्रतिपक्ष के नेता से अनुपम के संबंध की जानकारी दिल्ली पहुंच गई थी तो केंद्र सरकार ने भी बेहद अनुभवी डॉक्टर्स की टीम भेज दी थी। खबरों की सुर्खियां मीडिया में फैल चुकी थी।
बाहर भीड़ लगी थी। अनुपम जहां जहां पोस्टेड रहा था और आरूषि ने जिन मरीजों को बचाया था, आज उनके परिवार अनुपम की जिन्दगी के लिए दुआएं कर रहे थे। दुआएं अकबरपुर में भी मांगी जा रही थी। वहां के लोग दुखी भी थे और शर्मिंदा भी कि उनके यहां ऐसे कर्मठ ऑफिसर की जान पर बन आई थी। सभी षड्यंत्रकारी और सहयोगी गिरफ्तार हो चुके थे। जनता ने सक्रिय सहयोग दिया उन्हें गिरफ्तार करवाने और शहर में शान्ति कायम करने में।
ऑपरेशन कामयाब रहा। गोली निकाल दी थी आरूषि ने, वो भी बिना किसी नुकसान के। सभी टीम सदस्य और हॉस्पिटल के लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
पर वह !!!
अब तक सुन्न आरूषि के कपड़े बदलवाए गए।
अचानक आरूषि को झटका लगा !! उसकी चेतना लौटने लगी।
"अभागी !!! मां बाप को खा गई !!! अरे, विजय का तो वंश ही खतम हो गया !!! हमारे बहू बेटे, दोनों को लील गई !!!...….. अरे देखो !!! सुषमा बाईसा के कंवर सा को भी खा गई !!! बहुत मना किया था पर बाईसा मानी ही नहीं !!! अब अनुपम और उनका क्या होगा ???.........."
उसके कानों में शब्द गूंजने लगे। उसे सब याद आने लगा। आज वही परिस्थितियां जैसे दृश्यमान थी।
"सच में मैं ही अभागी हूं। जिसके जीवन में आई, खतरा बन गई। पहले मम्मी पापा, फिर डैड जी, मम्मीजी और अब.... अब अनुपम भी.... अगला नंबर आरव का होगा !!!!! नहीं, नहीं... मैं दूर चली जाऊंगी.... सबसे दूर...!!"
उसके डरावने मनोभाव हावी होने लगे उस पर। वह अवचेतना में ही हॉस्पिटल से बाहर आ गई और ऑटो में सवार हो गई।
"बहनजी कहां जाना है आपको ??" ऑटो ड्राईवर ने ऑटो चलाते हुए पूछा।
"......."
वह डर गया "बाप रे, पता नहीं कौन है ?? कहां जाना है इसे ?? आज चैकिंग भी जबरदस्त है। बेवजह पुलिस इंक्वायरी होगी !! ऐसा करता हूं इसे रेल्वे स्टेशन छोड़ देता हूं।"
उसने ऑटो रेलवे स्टेशन पर रोक दिया। आरूषि विचारों के झंझावात में उलझी उतर गई। स्टेशन पर डिब्रूगढ़ राजधानी खड़ी थी। वह अवचेतना में उसमें चढ़ गई।
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सैयद अब्दुल रजा दिल्ली अपने रिश्तेदार की शादी में सम्मिलित होने परिवार सहित गुवाहाटी से आए थे। जाते समय दिल्ली ज्यादा रुकने की वजह से उन्हें अपने हवाई टिकट्स कैंसिल करवाने पड़े और आपात स्थिति में उन्होंने राजधानी से जाने का निश्चय किया था। वह निश्चय शायद भाग्य की मेहरबानी थी। उनकी बेटी, जो लखनऊ में ब्याही थी। उसकी सास की तबियत अचानक बिगड़ने से उसे लखनऊ ही उतरना पड़ा। उनके दामाद उसे लिवाने स्टेशन पर आ गए थे। उसे छोड़कर वे डिब्बे में लौटे। उन्हें एक बेहद सुंदर लडकी बदहवास सी दिखाई दी।
"मोहतरमा, आपकों कहां जाना है ? आपकी सीट कौनसी है ?" उन्होंने दिल्ली चार्ट देखा था। डिब्बे की सभी सीटें गुवाहाटी तक आरक्षित थी। इसलिए उत्सुकतावश वे पूछ बैठे। वह लड़की उनकी बेटी की हमउम्र और वैसी ही सुंदर थी।
".........."
उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। ट्रेन रवाना होने पर वे अपनी सीट पर चले आए पर दिल अभी भी वहीं था।
"किस चिंता में डूबे हैं ?" उनकी पत्नी ने पूछा।
"पता नहीं कौन लड़की है अपनी रुखसाना सी !! अभी लखनऊ से चढ़ी दिखती है और होश में नहीं है।"
"अरे कहां ?"
"वहां, गेट के पास ही खड़ी है।"
वे उठ गई। उन्होंने देखा उनके पति सही कह रहे थे। तभी वहां टीटीई आ गया।
"आप कहां बैठी हैं ? टीटीई संशय में था उसने चार्ट में देखा था लखनऊ से कोई सवारी का इस फर्स्ट एसी में रिजर्वेशन नहीं था।
"ये मेरी बेटी है। सास की तबियत खराब होने से परेशान है।"वे उसका हाथ पकड़कर अपनी सीट की तरफ़ ले आई। टीटीई को जानकारी थी कि उस परिवार में अचानक कोई समस्या आ गई थी। उधर रुखसाना की सीट गुवाहाटी तक आरक्षित थी।
"बेटी कौन हैं आप ??? कहां जायेंगी ??? " कोई जवाब न पाकर वे उसकी ओर ध्यान से देखने लगीं। लडकी के सर से पल्लू सरक आने से मांग में लगा सिंदूर उन्हें दिख गया।
"शायद अपने ससुराल से भाग कर आई दिखती है।"सैयद साहब बोले।
"हां, शायद आप सही हैं। किसी भले हिन्दू परिवार की दिखती है।"
"अभी तो टीटीई ने ध्यान नहीं दिया है। आप इसे अपने पास सुला लें और अपना बुर्का इसे पहना दें।"
उन्होंने रजा साहब की बात मानकर उसे बुर्का पहना दिया और सीट पर लिटा दिया।
गुवाहाटी तक वह लड़की कुछ नहीं बोली। न ही उसने कुछ भी खाने को लिया। उन्होने उसे अपने घर ले जाने का निश्चय किया।
"अब्बा ये किसे लाए हैं अपने साथ ?? उन्हें लिवाने आए उनके लड़के ने पूछा। उनका लड़का अख़्तर रुखसाना के जन्म के कई सालों के बाद हुआ था और अभी मात्र 18 बरस का ही था।
"बेटे पता नहीं कौन है लखनऊ तेरी बाजी उतरी तो यह डिब्बे में आ गई थी। भले घर की लग रही है। शायद ससुराल में कोई परेशानी है।"
"अम्मी आपको कैसे पता ये शादीशुदा हैं ?"
"बेटे इसकी मांग में कुमकुम लगा है। कोई हिन्दू है। मुसीबत की मारी है।"
"चलो कोई नहीं, बाजी की कमी दूर हो जाएगी।"वह खुश हो गया था। जब वह 10 बरस का था तो उसकी बाजी की लखनऊ शादी हो गई थी और वह घर में अकेला महसूस करता था।
सैय्यद साहब का होटल का कारोबार था। सारा परिवार उस लडकी को लेकर घर आ गया।
!!!!!!!!!!!
वैभव
28-Jan-2022 02:38 PM
Very nicely written
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Ajay
28-Jan-2022 02:47 PM
Thanks Vaibhav ji
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Sandhya Prakash
25-Jan-2022 08:20 PM
Ye kya...nayika hi bichhd gayi fir se😔😔
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Ajay
26-Jan-2022 12:30 AM
अभी वह अपने डिप्रेशन से जूझ रही है।
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🤫
30-Dec-2021 10:52 PM
आह, एक पार्ट आ भी गया और हमे देर से पता लगा, कोई नहीं एक साथ दो दो भाग पढ़ लेंगे। बेहद इंट्रेस्टिंग कहानी है आपकी।
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Ajay
30-Dec-2021 11:32 PM
कल तक की छुट्टी है तो पाठकों तक पूरा लाभ पहुंचाने की सोच है 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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